रेवाड़ी: राज सिनेमा हाल, जहां कभी ९० के दशक में दर्शकों को लाईन में लगकर टिकट लेकर फिल्म देखना पड़ती थी वहीं आज यही राज सिनेमा अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। खण्डहर में तब्दील राज सिनेमा के मालिकों ने कभी इसके रख रखाव पर ध्यान नहीं दिया। वह मात्र इस हाल के चलाने वाले ठेकेदारों से किराया लेने ही आते हैं, उन्होंने इस हाल की मरम्मत कराने और ना ही इस हाल को चलाने में रुचि दिखाई। राज सिनेमा हाल पहले ही एक विशेष विषय में रुचि रखने वाले व्यक्तियों के लिए विख्यात है। इस हाल में परिवारिक व्यक्ति तो फिल्म देखने नहीं आते लेकिन दर्शकों का एक विशेष वर्ग अपनी जान जोखिम में डाल कर इस हाल में फिल्म देखने आते है। इस हाल में आधे से अधिक कुर्सियां टूटी हुई हैं और छत से अक्सर मलबा गिरता रहता है, मलबा गिरने से किसी भी वक्त दर्शकों के साथ गंभीर हादसा हो सकता है। सुविधा के नाम पर ना तो सिनेमा हाल में शौचालय है और ना ही पीने के पानी की कोई व्यवस्था है। हाल के अंदर छत अनेक स्थानों से झड़ रही है। इस तरफ ना तो कभी प्रशासन ने, ना इस हाल को चला रहे ठेकेश्दारों ने, और न हाल के मालिकों ने इसे गंभीरता से लिया। यदि यह सिनेमा हाल इसी तरह चलता रहा तो एक न एक दिन कोई बड़ा हादसा हो सकता है। हाल के मालिकों को केवल मुनाफे से और प्रशासन को टैक्स मिलने से ही मतलब है, उन्हें दर्शकों की जान जाने की कोई परवाह नहीं है। इस हाल को चला रहे प्रबंधक के कमरे की हालत भी खराब है और प्रबंधक के बैठने वाली जगह के ठीक उपर छत का मलबा अक्सर गिरता रहता है। एक बार तो काफी भारी मात्रा मेें मलबा गिरा लेकिन संयोगवश उस वक्त प्रबंधक अपनी सीट पर नहीं थे। प्रशासन को इसे गंभीरता से लेना चाहिये अन्यथा कोई बड़ा हादसा उपहार कांड की याद दिला सकता है, जिसमें सैंकड़ों दर्शकों की जान गई थी। जब इस संदर्भ में हमारे संवाददाता ने प्रबंधक से पूछा कि इस समस्या का समाधान क्यों नहीं करते तो उन्होंने बताया कि मैंने हाल के मालिकों को इस बारे में बता दिया है,लेकिन अभी तक उन्होंने कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई। अगर निकट भविष्य में कोई हादसा होता है तो उसके जिम्मेवार कौन होगे- दर्शक,हाल के मालिक या फिर प्रशासन.. .. .. सोचने का विषय है।
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